अपने मल्लाह के साथ
घूम रहा हूँ
उसके ही सागर में,
इस तनुत्र नौका में।
घूम रहा हूँ
उसके ही सागर में,
इस तनुत्र नौका में।
प्रवाह के मध्य
जहां धारा दुर्गम और दुर्दमनीय हो जाती है
मेरा मल्लाह मुस्कुराते हुए नाचता है,
लहराते हुए गाता है ।
मैं समझ नहीं पाता हूँ कि
मुझे डराता है
या कि मेरे डर को भगाता है ।
मैं समझ नहीं पाता हूँ ।
नदी की उफनती लहरें ।
मेरे इर्दगिर्द तैरते
नदी के विकराल जीव ।
गूंजती नदी की अनुगूँज ।
कभी दहकता सूरज ।
कभी दमकती चाँदनी ।
कभी तेज बहती हवा की
फुफकारती आवाज ।
कभी बादलों की गरजती
फुत्कार।
कभी आती उषा में
गाते पक्षी।
कभी उतरती संध्या में
झलकती विभावरी।
कुशल मल्लाह के साथ
मैं नौका में हूँ।
मैं नदी में हूँ ।
इसी मल्लाह ने मुझे
धारा के विपरीत रख
प्रवाह के प्रभाव को
निर्भय हो दिखाया है ।
आशंका ।
भय।
अपरिचित परिचय ।
दुबकता विश्वास ।
संकोची उल्लास।
और अस्फुट वाणी में
मैने करबद्ध प्रार्थना की ।
बच्चे की तरह पल्लू पकड़
किनारे पर जाने को कहा ।
मल्लाह ने सुना
मल्लाह मुस्कुराया और
दूर से उसने मुझे
सप्तरंगी किनारा दिखाया ।
मुझे स्निग्ध नयनों को कोरों से
भरमाया।
मैं अभी तक नदी में हूँ।.......अरविन्द
जहां धारा दुर्गम और दुर्दमनीय हो जाती है
मेरा मल्लाह मुस्कुराते हुए नाचता है,
लहराते हुए गाता है ।
मैं समझ नहीं पाता हूँ कि
मुझे डराता है
या कि मेरे डर को भगाता है ।
मैं समझ नहीं पाता हूँ ।
नदी की उफनती लहरें ।
मेरे इर्दगिर्द तैरते
नदी के विकराल जीव ।
गूंजती नदी की अनुगूँज ।
कभी दहकता सूरज ।
कभी दमकती चाँदनी ।
कभी तेज बहती हवा की
फुफकारती आवाज ।
कभी बादलों की गरजती
फुत्कार।
कभी आती उषा में
गाते पक्षी।
कभी उतरती संध्या में
झलकती विभावरी।
कुशल मल्लाह के साथ
मैं नौका में हूँ।
मैं नदी में हूँ ।
इसी मल्लाह ने मुझे
धारा के विपरीत रख
प्रवाह के प्रभाव को
निर्भय हो दिखाया है ।
आशंका ।
भय।
अपरिचित परिचय ।
दुबकता विश्वास ।
संकोची उल्लास।
और अस्फुट वाणी में
मैने करबद्ध प्रार्थना की ।
बच्चे की तरह पल्लू पकड़
किनारे पर जाने को कहा ।
मल्लाह ने सुना
मल्लाह मुस्कुराया और
दूर से उसने मुझे
सप्तरंगी किनारा दिखाया ।
मुझे स्निग्ध नयनों को कोरों से
भरमाया।
मैं अभी तक नदी में हूँ।.......अरविन्द
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