प्रभु जी ! अद्भुत नाच नचाया .
जीव बना कर भेजा जग में ,भटका अरु भटकाया .
बालपने में हर संग लिपटा ,रोया और हँसाया .
आया योवन नारी भेजी ,बहुरंगी काम जगाया .
अपनी ही रचना में माधव ,तड़पा और तड़पाया .
मिट्टी काया को मिट्टी सहेजे मिट्टी में मिलवाया .
सच कहूँ ,अब तो सुन लो ,अपना आप भुलाया .
मृगतृष्णा है तेरी सृष्टि व्यर्थ ही दौड़ दौड़ाया .
मिल जाओ माधव ,गर्दन पकडूँ ,पूछूँ तुझे प्यारे .
माया संग नाचा क्योंकर, विक्षेप न तूने हटाया .......अरविन्द
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें