बुधवार, 20 मार्च 2013

चलो !

चलो ! तुम्हें जंगल की सैर कराता हूँ .
सूखे ,बिखरे पत्तों पर चल कर
वृक्षों का संगीत सुनाता हूँ .
चहकती चिड़िया के
फुदकते नाच पर
नाचती हुई फूलों की
फुनगी का नाच दिखाता हूँ .
चलो ! तुम्हें जंगल की सैर कराता हूँ .
यह वट वृक्ष है
विशाल और सुदृढ़ .
जैसे किसी बड़े बूढ़े का
घर पर घना साया हो .
जिसकी गोद में लहराती कोंपलों ने
अपना भाग्य सराहा हो .

आओ न ! देखो !!
इस देवदारु को
सीधा आकाश की ओर गया है
अपनी डालिओं सी भुजाओं को खोल
ऊपर और ऊपर ..
यह नहीं जानता कि बूढ़ा वट
इसे चुपचाप निहारता है
जवान होते बेटे को
जैसे कोई बाप पुचकारता है .

बगल में खड़ी
मौलसिरी ,मंद मंद सुगंध में
मुस्कुराती है
इश्कपेचे की बेल
मुग्धा की तरह इस देवदारु से
लिपट लिपट जाती है .
अपने नीले नीले फूलों को
प्रेम से लुटाती है .
मौलसिरी चुपचाप झर -झर
झरझराती है .
बेले की महक मंगल गीत गाती है .

डरो मत ,अब यहाँ
शेर ,चीते ,लोमड़ी और रीछ नहीं हैं
आदमी की अंतर -खोह में
जा बसे हैं .
इसीलिए जंगल अब
अबोले बोल सा शांत है
परमात्मा के गीत सा निर्भ्रान्त है .....अरविन्द


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