गुरुवार, 21 मार्च 2013

किंकिणी की रागिनी

सोने नहीं दूंगी तुम्हें ,कंगना चुभोउंगी
पलकों को चूम चूम नींद को भागऊँगी .
प्यारी सी  रात जगी मौन गीत छा गया
रोयाँ रोयाँ दीप बले नेह को जगा गया
दिन जब जागता संबंधी जग जाग जाते
झुकी झुकी पलकों से नयन तुम्हें निहारते
बोल सारे चुप ,भाषा देह बन  पुकारती
चूड़ियाँ भी बोलतीं ,रुनझुन पायल भी पुकारती 
कैसे तुम्हें सोने दूँ ,जग सोया तू जाग प्यारे .
किंकिणी की रागिनी तुम्हें है दुलारती .........!!!!....अरविन्द 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें