रविवार, 10 मार्च 2013

मुश्किल .

जगत में पाना समीहित का नहीं आसान है कुछ .
किन्तु पाने की समीहा छोड़ पाना और मुश्किल .

यह जगत है ,भावनाएं कब फलित होती यहाँ पर
हर जवानी काल के ही  गाल में  सोती यहाँ  पर

सत्य के हर पक्ष पर सौ सौ झूठ की परछाईयां  हैं .
राजमार्ग कहीं कहीं हैं ,अधिक तो बस खाइयाँ हैं
भेद इस जग का तनिक पाना नहीं आसान है कुछ .
भेद पाने की समीहा छोड़ पाना और मुश्किल .

विपद बरसाना सदा सब पर रही आदत दनुज की .
हर विपद से जूझना है बन गई फितरत मनुज की .
किन्तु हर कोई दनुज निज को मनुज ही तो जानता है
वह स्वयं को शुभ ,अशुभ तो इतर जन को मानता है
दानवों के इस नगर में खोजना मानव कठिन है .
किन्तु यूँ इस खोज से पीछा छुड़ाना और मुश्किल .

रस्म ,रीति ,रिवाज के पहरे यहाँ प्रतिदिक लगे हैं .
भावना ,विश्वास जब आए ,तभी जग ने ठगे सब .
अर्थ है विकराल ,उससे स्वार्थ भी कुछ अधिक ही है
अधिकतम भीषण यहाँ वे ,जो बहुत अपने सगे हैं .
मनुजता की लाज डूबी जा रही ,देखे न बनता .
किन्तु उसके त्राण से नजरें बचाना और मुश्किल .

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