शनिवार, 30 मार्च 2013

????

तुम्हारे लिए कोई कविता गाऊं ?
मन भाता सुर  संगीत  सुनाऊं ?
द्वारे आकर गहरे  ढोल बजाऊ ?
सोये जग को  आन  जगाऊ  ?
              क्या तब बात सुनोगी तुम ?
मौन मधुर  मुस्कान तुम्हारी  .
क्यों कर रस भाव छिपाती हो ?
क्या भाषा समझ नहीं आती है ?
क्यों मुग्धा सी बल खाती हो .?
जब अपनी पर आ जाऊंगा --
भांति रुक्मिणी ले जाऊँगा .
               क्या तब बात सुनोगी तुम ?
सखिया तुमको  लगें  प्यारीं .
कुछ ब्याहीं कुछ अभी कुंवारीं 
हँस हँस उन संग संलाप करो -
अपने  मोहन  से  छिपी  रहो 
जब तान बांसुरी गाऊंगा ---
                 क्या तब बात सुनोगी तुम ?
अब तो मुग्धा मान तजो तुम
शुक्ला बन अभिसार भजो तुम
मैंना मैंना  गान  तजो  तुम .
वासन्तिक मधु राग सुनो तुम
                 क्या कान्हा को तरसाओगी ......अरविन्द

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें