तुम्हारे लिए कोई कविता गाऊं ?
मन भाता सुर संगीत सुनाऊं ?
द्वारे आकर गहरे ढोल बजाऊ ?
सोये जग को आन जगाऊ ?
क्या तब बात सुनोगी तुम ?
मौन मधुर मुस्कान तुम्हारी .
क्यों कर रस भाव छिपाती हो ?
क्या भाषा समझ नहीं आती है ?
क्यों मुग्धा सी बल खाती हो .?
जब अपनी पर आ जाऊंगा --
भांति रुक्मिणी ले जाऊँगा .
क्या तब बात सुनोगी तुम ?
सखिया तुमको लगें प्यारीं .
कुछ ब्याहीं कुछ अभी कुंवारीं
हँस हँस उन संग संलाप करो -
अपने मोहन से छिपी रहो
जब तान बांसुरी गाऊंगा ---
क्या तब बात सुनोगी तुम ?
अब तो मुग्धा मान तजो तुम
शुक्ला बन अभिसार भजो तुम
मैंना मैंना गान तजो तुम .
वासन्तिक मधु राग सुनो तुम
क्या कान्हा को तरसाओगी ......अरविन्द
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