होली
रस रंग राग भीगी
होली आई फाग भीगी
गुलाल की लाल लाली
तेरे कपोलों पर छा गई
सखि ! होली आ गयी .
प्रिय -कर -कठोर परस
वक्ष पर अधर धर
कठिन कसी काछिनी
पीताभ शरमा गयी .
उरु कछु कसमसाए
चुनरी लुढ़क लुढ़क जाए
बहु रंग भीगी तेरी --
कंचुकी भरमा गयी .
अरी ! होली छा गयी .
चपल चित्त
चकोर नयन
ठुमक उठे पाँव गहन
ढोलकी की थाप
रंगे तन तेरे छा गयी
प्रियतमा ! होली आ गयी .
थाप ! थाप ! थाप !
गुलाबी एडियो की धमक थाप
नाच ! नाच ! नाच ! लाली
अलक्तक सी भा गयी .
सजनि ! होली आ गयी .
बाल वृद्ध लास भरे
हाथों में गुलाल भरे
देह की चमक सारी
हुलसित नहा गयी .
प्रिये ! होली आ गयी .
छोड़ सारी शर्म लाज
घर के सब काम काज
मारी पिचकारी तूने
मेरे तन छा गयी .
सहचरि ! होली आ गयी .
द्वंद्व सब धुल गए
रंग घुल मिल गए
काटी जो चिकोटी तूने
अंग अंग जगा गयी .
ओ री ! होली आ गयी ........अरविन्द
रस रंग राग भीगी
होली आई फाग भीगी
गुलाल की लाल लाली
तेरे कपोलों पर छा गई
सखि ! होली आ गयी .
प्रिय -कर -कठोर परस
वक्ष पर अधर धर
कठिन कसी काछिनी
पीताभ शरमा गयी .
उरु कछु कसमसाए
चुनरी लुढ़क लुढ़क जाए
बहु रंग भीगी तेरी --
कंचुकी भरमा गयी .
अरी ! होली छा गयी .
चपल चित्त
चकोर नयन
ठुमक उठे पाँव गहन
ढोलकी की थाप
रंगे तन तेरे छा गयी
प्रियतमा ! होली आ गयी .
थाप ! थाप ! थाप !
गुलाबी एडियो की धमक थाप
नाच ! नाच ! नाच ! लाली
अलक्तक सी भा गयी .
सजनि ! होली आ गयी .
बाल वृद्ध लास भरे
हाथों में गुलाल भरे
देह की चमक सारी
हुलसित नहा गयी .
प्रिये ! होली आ गयी .
छोड़ सारी शर्म लाज
घर के सब काम काज
मारी पिचकारी तूने
मेरे तन छा गयी .
सहचरि ! होली आ गयी .
द्वंद्व सब धुल गए
रंग घुल मिल गए
काटी जो चिकोटी तूने
अंग अंग जगा गयी .
ओ री ! होली आ गयी ........अरविन्द
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें