शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

मेरे मोहन !मेरे मनभावन !

मनमोहन हो  कर कंस बने  हो
शीला से लीला करबाते .
बसे बसाये घर तुड बाते
अवसरवादी मंत्रिंयों के
विकृत चेहरे दिखलाते .

जनता बेचारी द्रुपदसुता सी
अपनी लाज बचाना चाहती .
दुशासन से मनमोहन तुम
ध्रितराष्ट्र सा मुस्काते हो
कलयुग में भी  लीला करते हो .

प्रभु !माया तेरी बहुत मुलायम
मुरली मनोहर तेरे पायन
जन जन तेरी ओर तके है
तुम बने धनपतियो  के बने हो  वाहन .


राधा तज किसको  ले आए .
तुम नाचे या वह नचवाये .
मौन मौन में मेरे मनमोहन
अद्भुत पांसे तुम चलवाये .
शकुनि बेचारा ढूंढ़ रहा है ,

कहीं चुल्लू भर पानी मिल जाये .


भापे !अद्भुत तेरी राजनीति है
अद्भुत तेरा बंसी वादन
नहीं समझ पाते बूढ़े दल
तुम जुटा लेते संख्या मनभावन .

मेरे मोहन !मेरे मनभावन  !

साल दो साल और खेल लो
माया ममता खूब देख लो
जिस दिन जन की आँख खुलेगी
उस दिन प्यारे बीन बजेगी .
लीला तेरी नहीं चलेगी .............अरविन्द




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