जिन्दगी बड़ी विचित्र है .
कहीं तटस्थ ,कहीं शत्रु ,कहीं मित्र है .
बाँट दिया सब कुछ जो जग ने दिया था
अब सब चित्रों में रक्षित सुरक्षित है .
सचमुच .जिन्दगी बड़ी विचित्र है .
पराये अपने हुए ,अपने हुए पराये
सबने अपने -अपने रास्ते सुझाये .
सोचा था गन्तव्य को पा ही लूँगा
हटा नहीं पाया अर्धसत्य के साये .
बाहर भरा भरा दीखे ,रिक्त भीतर है
सचमुच, जिन्दगी बड़ी विचित्र है .
महलों में सिंहासनों पर संत सजे हैं .
त्यागिओं के दर पर गजराज बंधे हैं .
उदासिओं के जहाँ महफ़िल सजी हुई .
वेरागिओं के पुत्रों की पांत लगी हुई .
संसार का दीखा अजीब चरित्र है .
सचमुच ,जिन्दगी बड़ी विचित्र है.
सुख के लिए ही संसार सजा था
आनंद के लिए यह गृहस्थ बसा था
लुभा नहीं पाया जो कुदरत ने दिया था
ढूंढता रहा जिसे परमात्मा कहा था
बड़े बड़े अनुभव, दुनिया व्यर्थ है
सचमुच जिन्दगी बड़ी विचित्र है .
कहाँ जाऊं क्या करें कुछ सूझता नहीं
कर्म का अज्ञान यह छूटता नहीं .
हर तरफ माया का प्रपंच खड़ा है
स्वंयभू अज्ञात सौंदर्यमय प्रभु
दत्त ज्ञान कोदंड मूक कुंद पड़ा है .
मृग मारीचिका जगत शून्य अत्र है .
जिन्दगी सचमुच बड़ी विचित्र है ........अरविन्द
कहीं तटस्थ ,कहीं शत्रु ,कहीं मित्र है .
बाँट दिया सब कुछ जो जग ने दिया था
अब सब चित्रों में रक्षित सुरक्षित है .
सचमुच .जिन्दगी बड़ी विचित्र है .
पराये अपने हुए ,अपने हुए पराये
सबने अपने -अपने रास्ते सुझाये .
सोचा था गन्तव्य को पा ही लूँगा
हटा नहीं पाया अर्धसत्य के साये .
बाहर भरा भरा दीखे ,रिक्त भीतर है
सचमुच, जिन्दगी बड़ी विचित्र है .
महलों में सिंहासनों पर संत सजे हैं .
त्यागिओं के दर पर गजराज बंधे हैं .
उदासिओं के जहाँ महफ़िल सजी हुई .
वेरागिओं के पुत्रों की पांत लगी हुई .
संसार का दीखा अजीब चरित्र है .
सचमुच ,जिन्दगी बड़ी विचित्र है.
सुख के लिए ही संसार सजा था
आनंद के लिए यह गृहस्थ बसा था
लुभा नहीं पाया जो कुदरत ने दिया था
ढूंढता रहा जिसे परमात्मा कहा था
बड़े बड़े अनुभव, दुनिया व्यर्थ है
सचमुच जिन्दगी बड़ी विचित्र है .
कहाँ जाऊं क्या करें कुछ सूझता नहीं
कर्म का अज्ञान यह छूटता नहीं .
हर तरफ माया का प्रपंच खड़ा है
स्वंयभू अज्ञात सौंदर्यमय प्रभु
दत्त ज्ञान कोदंड मूक कुंद पड़ा है .
मृग मारीचिका जगत शून्य अत्र है .
जिन्दगी सचमुच बड़ी विचित्र है ........अरविन्द
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें