प्रभु जी !कुछ तो बात करो .
भवसागर में मुझ को फैंका अब क्यों मौन धरो .
कहाँ गया वह वचन आपका सब कुछ गयो बिगरो .
दयालु कहलावत कृष्णा काहे भए निर्मम सिगरो .
कैसा मन ये तुमने दीना नित नित करो झगड़ो .
ज्ञान भक्ति की बात न माने काम क्रोध लिपटो .
मन वच करम माया संग लिपटा नाहिं रहा खरो .
अरविन्द नाम धरो याही देहका आकंठ पंक परो .
क्या करों माधव कछु नाहिं सूझे अब तो हाथ धरो .....अरविन्द
भवसागर में मुझ को फैंका अब क्यों मौन धरो .
कहाँ गया वह वचन आपका सब कुछ गयो बिगरो .
दयालु कहलावत कृष्णा काहे भए निर्मम सिगरो .
कैसा मन ये तुमने दीना नित नित करो झगड़ो .
ज्ञान भक्ति की बात न माने काम क्रोध लिपटो .
मन वच करम माया संग लिपटा नाहिं रहा खरो .
अरविन्द नाम धरो याही देहका आकंठ पंक परो .
क्या करों माधव कछु नाहिं सूझे अब तो हाथ धरो .....अरविन्द
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