शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

चलो एक दीपक जगाएँ

चलो एक दीपक जगाएँ
अँधेरे के विरुद्ध युद्ध का बिगुल बजाएँ .

प्रकाश प्रकृति की कृपा है .
प्रकाश ऋषि  की ऋचा है .
अंधेरे के विरुद्ध खड़ा जो
प्रकाश उसकी भवितव्यता है .

अकर्मण्यता ही अंधकार है .
निराशा तमस पारावार है .
बीज नहीं मानता दबा रहना
सूर्य जीवन का पहरेदार है

तो  क्यों हम मुंह ढक सोते रहें ?
निसर्ग की प्रतीक्षा में रोते रहें ?
अस्मिता का तत्व ही अस्तित्व है
परम का वही अभीष्ट तत्व है .

रचें उस नये संसार को ,जहाँ
 न अंधकार का  आकार  हो .
सबके लिए आशा का खुला द्वार हो .
परमात्म इस मनुष्य में साकार   हो .

चलो ,एक नया दीपक जगाएँ
अँधेरे के विरुद्ध घात लगाएं ........अरविन्द

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