चलो एक दीपक जगाएँ
अँधेरे के विरुद्ध युद्ध का बिगुल बजाएँ .
प्रकाश प्रकृति की कृपा है .
प्रकाश ऋषि की ऋचा है .
अंधेरे के विरुद्ध खड़ा जो
प्रकाश उसकी भवितव्यता है .
अकर्मण्यता ही अंधकार है .
निराशा तमस पारावार है .
बीज नहीं मानता दबा रहना
सूर्य जीवन का पहरेदार है
तो क्यों हम मुंह ढक सोते रहें ?
निसर्ग की प्रतीक्षा में रोते रहें ?
अस्मिता का तत्व ही अस्तित्व है
परम का वही अभीष्ट तत्व है .
रचें उस नये संसार को ,जहाँ
न अंधकार का आकार हो .
सबके लिए आशा का खुला द्वार हो .
परमात्म इस मनुष्य में साकार हो .
चलो ,एक नया दीपक जगाएँ
अँधेरे के विरुद्ध घात लगाएं ........अरविन्द
अँधेरे के विरुद्ध युद्ध का बिगुल बजाएँ .
प्रकाश प्रकृति की कृपा है .
प्रकाश ऋषि की ऋचा है .
अंधेरे के विरुद्ध खड़ा जो
प्रकाश उसकी भवितव्यता है .
अकर्मण्यता ही अंधकार है .
निराशा तमस पारावार है .
बीज नहीं मानता दबा रहना
सूर्य जीवन का पहरेदार है
तो क्यों हम मुंह ढक सोते रहें ?
निसर्ग की प्रतीक्षा में रोते रहें ?
अस्मिता का तत्व ही अस्तित्व है
परम का वही अभीष्ट तत्व है .
रचें उस नये संसार को ,जहाँ
न अंधकार का आकार हो .
सबके लिए आशा का खुला द्वार हो .
परमात्म इस मनुष्य में साकार हो .
चलो ,एक नया दीपक जगाएँ
अँधेरे के विरुद्ध घात लगाएं ........अरविन्द
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