सोमवार, 31 दिसंबर 2012

गज़ल

अंधों की बसती में कोई दर्पण नहीं खरीदता
मत्स्यगंधाओं को सुगन्ध नहीं रुचता .

राजनीति में संवेदना तो आकाशकुसुम है
सिकता को पीस कर तेल नहीं मिलता .

मध्यवर्ग संभालता मूल्य और चरित्र को है
उच्च और नीच में यह फूल नहीं खिलता .

दूसरों को शिक्षा देना बहुत ही आसान है
कुत्ते की पूँछ कोई सीधी नहीं करता .

जिसने खो दिए गुण, धर्म ,करुणा, प्रेम
उस घर में  अब मानव नहीं जन्मता .

दानवों की नगरी में वही तो सुरक्षित आज
विष से विष का उपचार जो है करता .

कांटा भी जरूरी है फूलों की सुरक्षा हेतु
तनया की देह में हो ज्वालामुखी धधकता .
अरविन्द गज़ल 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें