जी चाहता है
हृदय की सबसे ऊँची बुर्जी पर
खडे होकर तुम्हें
आवाज दूँ
घाटियों में छा जाए
तुम्हारे नाम की
अनुगूँज ...
और मैं देर तक सुनता रहूँ .
लेकिन जब भी मैने
तुम्हें हौले से पुकारा है ...हे मेरे प्रभु !
आंधीयां उठी ... भावों के भयभीत पंछी
उड़ गए हृदयाकाश में बेतरतीब .
तुम्हारा नाम प्रकृति को झकझोर जाता है ... मेरे आत्मीय .. मेरे प्रभु !
कहो ! तुम्हें कहाँ से पुकारूँ ....मेरे प्रभु !?!
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