शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

बलात्कार की समस्या --समाधान की तलाश

बीते कुछ दिनों से हम सब एक अमानवीय समस्या से जूझ रहे हैं .देश के हर कोने से स्त्रिओं पर हो रहे अत्याचार की ख़बरों ने हर संवेदनशील को झकझोर दिया है . क्या इस प्रकार के भारत की कभी कल्पना की थी ?शायद नहीं . लगता है आदमिओं के वेश में दुर्दांत राक्षस जन्म ले चुके हैं . सरकारें जो उपचार तलाश रही हैं वे सार्थक प्रतीत नहीं हो रहे .समस्या कहीं अन्यत्र है .विचार करें ...
1.क्या आपको ऐसा नहीं लगता की नवयुवकों की मनोचिकित्सा जरूरी है . अगर जरूरी है तो इसके लिए कोण सी योजना है .?
2. मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों ने देश के चरित्र को काफी हद तक दूषित किया है क्या ?लूट खसूट ,भ्रष्टाचार ,पतनग्रस्त मानव और मानवीयता ,क्या इन नीतियों का परिणाम नहीं है ?
3.शिक्षा में क्यों नहीं व्यक्ति निर्माण के प्रयास किये जा रहे ?
4.स्वस्थ आदमी के निर्माण के लिए किसी नीति का निर्माण किसी भी संस्था अथवा सरकार द्वारा क्यों नहीं हो रहा ?
5.स्कूलों में मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए कौन कौन से प्रयास किये जा रहे हैं ?
6.समाज का कौन सा केंद्र ऐसा है जो बदतमीज ,बददिमाग ,बिगडैल ,असभ्य और विकृत मानसिकता के लोगों को सुधारने का काम कर रहा है ?
7.व्यक्ति निर्माण के लिए सरकार की कौन सी नीति है ?
8.मानवीयता के कलंकों को क्यों न ऐसा दंड दिया जाये जो दुष्टों में भय का संचार कर सके ?
9.युवकों में इस यौन विकृति का क्या कारण है ,समाजशास्त्री और शिक्षा शास्त्री क्यों नहीं सोचते हैं ?
10.मनोचिकित्सक क्यों मौन बैठे हैं ?
            समस्त भारत को यह जान लेना चाहिए की वर्तमान सरकार लोक कल्याण के लिए नहीं बल्कि भ्रष्ट तंत्र के कल्याण के लिए नीतियां बना सकती है ,किसी भी प्रकार के सामाजिक सुधार की आशा राजनीति से करना एक आकाश कुसुम है ---यह हम सबको जान लेना चाहिए .............................................अरविन्द

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