नियति का धत्ता
गिरता हुआ पत्ता
लहुलुहान हुए महान
वाह ! वाह !!
पुत्रों का सद्चरित्र
खुल गए वृद्धघर
वाह ! वाह !!
भ्रष्ट हुए अधिकारी
व्यवस्था की बीमारी
वाह ! वाह !!
मंदिरों का गृह गर्भ
अपढ़ पुजारी का दर्प
वाह !वाह !!
परमात्मा की मुस्कान
पाखंडियों की दूकान
वाह ! वाह !!
धूर्त हुए धनवान
पदों को पहचान
वाह ! वाह !!
दुष्टों की खुली भर्ती
योग्यता रही भटकती
वाह ! वाह !!
मूर्खों की सवारी
कुर्सी हुई बेचारी
वाह ! वाह !!
कविता करे आह ,आह
भई वाह ! भई वाह ,
वाह ! वाह !!………… अरविन्द
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