मंगलवार, 26 नवंबर 2013

वाह !वाह !!

नियति का धत्ता
गिरता हुआ पत्ता
            वाह !वाह !!
लोकतंत्र में सत्ता
खुले झूठ का भर्ता
            वाह ! वाह!!
कविता में भत्ता
सिलता न कुर्ता
          वाह ! वाह !!
परीक्षा में गत्ता
सफलता का रस्ता
          वाह ! वाह !!
अध्यापन का हाल
फटेहाल ,फटेहाल
          वाह ! वाह !!
पत्नी की  मुस्कान
लहुलुहान हुए महान
           वाह ! वाह !!
पुत्रों का सद्चरित्र
खुल गए वृद्धघर
          वाह ! वाह !!
भ्रष्ट हुए अधिकारी
व्यवस्था की बीमारी
          वाह ! वाह !!
मंदिरों का गृह गर्भ
अपढ़ पुजारी का दर्प
            वाह !वाह !!
परमात्मा की मुस्कान
पाखंडियों की दूकान
            वाह ! वाह !!
धूर्त हुए धनवान
पदों को पहचान
            वाह ! वाह !!
दुष्टों की खुली भर्ती
योग्यता रही भटकती
              वाह ! वाह !!
मूर्खों की सवारी
कुर्सी हुई बेचारी
           वाह ! वाह !!
कविता करे आह ,आह
भई वाह ! भई वाह ,
             वाह ! वाह !!………… अरविन्द





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