चाँदनी कब चाँद से अलग होती है .
सदा उसके भुजपाश में आबद्ध होती है .
चाँदनी को देखना चाहो ,
तो करो आकाश सी आँखें ,
छोटे से दीये की लौ से -
चाँदनी आंकी नहीं जाती है .
चाँदनी विराट है
आकाश की तरह
चाँद से ही चाँदनी जन्म पाती है .
देखना चाहो चाँदनी को
तो खोल दो खिड़कियाँ और
पूर्वाग्रही दरवाजे
चाँदनी उचक कर आँगन में
झाँक जाती है .
उन्मुक्त आकाश में
निरावरण जब तैर जाओगे
चाँदनी के परस में नहा जाओगे ,
लहरा जाओगे .
चाँदनी जीवन्तता है ,
चाँदनी विद्रोह है .
चाँदनी निर्भ्रान्ति ,बोध का स्व है .
मत मुंदी आँखों से चाँदनी तलाशो .
खोल दो सब खिड़कियाँ
फिर आकाश में झांको .............अरविन्द
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