रविवार, 21 अप्रैल 2013

मन को फकीराना करो

वक्त नहीं, मन को फकीराना करो 
खिड़कियाँ की दरारों से मत झांको
खोलो दरवाजा ,अपने को पहचाना करो .
न रिंद ,न मयखाना ,न विराना कुछ नहीं
गर्दन झुका कर झांको ,मत बेगाना करो .
हम तो तुम्हें ढूंढ़ ही लेंगे ,जानेमन -
महताब का नाम लेकर हमें मत बेगाना करो .....अरविन्द 

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