मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

आज फिर जीने की तमन्ना है।

आज फिर जीने की तमन्ना है।
कब तक मुहं ढाँप सोते रहोगे ?
कब तक दर्द बेगाना ढोते रहोगे ?
कब तक करवटें यूँ बदलते रहोगे ?
कब तक यूहीं सोचते रहोगे ?
आज फिर जीने की तमन्ना है।
जीना है तो दर्द को उड़ा कर जीओ
जीना है तो खुल कर मुस्कुरा कर जीओ
जीना  है तो ललकार मार कर जीओ
जीना है तो तलवार की धार पर जीओ
जीना है तो फूल सा खिलखिला कर जीओ
जीना है तो किसी को अपना बना कर जीओ
जीना है तो दर्द को भुला कर जीओ
जीना है तो बस अपना ही जीओ
जीना है तो प्रभु को मना कर जीओ
जीओ तो जलती मशाल सा जीओ
जीओ तो भारी तूफ़ान सा जीओ
जीओ तो तड़पते प्यार सा जीओ
जीओ तो किसी के कंठहार सा जीओ
जीना ,चुप चुप नहीं रोना है।
आज फिर जीने की तमन्ना है।
जीओ तो घिरते हुए बादल सा जीओ
जीओ तो बरसते सावन सा जीओ
जीओ तो उमड़ते सागर सा जीओ
जीओ तो लहराते हुए दामन सा जीओ
जीओ तो बनिए की दूकान सा न जीओ
जीओ तो सर्वस्व दान सा जीओ
जीओ तो शिशु की मुस्कान सा जीओ
जीना , गुमसुम नहीं होना है।
आज फिर जीने की तमन्ना है। ................ अरविन्द
               (अपने अभिन्न मित्र डा० के.के. शर्मा के लिए )



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