सोमवार, 30 दिसंबर 2013

अरे ! यह साल भी बीता
अरे यह साल भी बीत।
समय तो नापता ,ले
अपने हाथ में फीता    .
अरे ! यह साल भी बीता।

उठो ! अब जाग जाओ ,
खोलो आँख तुम ,मूंदे द्वार खोलो।
नयी किरण संग संकल्प के
नव संसार को खोलो।
हिलाओ विचार का सागर
उठे कोई नयी लहर आकर
खोले रुद्ध कपाट प्रभाकर
पाएं सभी शांति सुधाकर।
न गिनो तुम बीते हुए पल ,घंटे।
न देखो तुम विगत दिन ,मास के टंटे
उठो स्वागत करो ,आगत वर्ष के
उत्थान के ,उत्कर्ष के विमर्श भरे धंधे।
बीतता हो दिन ,न बीते आदमीयत ये
बीत जाएँ मास ,न बीते आत्मीयता ये
शुभ संकल्प के शुभ क्षण न बीतें
जगे आत्म सभी का ,जगे परमात्म भी
मिटे द्वैत का दुःख ,भेद कारक ही।
आओ स्वागत करें नव रश्मि का ,
नव वर्ष का ,आगत सुबह का।
बीत गया जो ,बीता  सो बीता …………अरविन्द .          





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