न काल देश का पता ,न दयाल देश का पता
थोथी वाणी व्याख्या में पूरे सिध्दहस्त हैं।
परमात्म तो बोले नहीं ,न आत्म ही है बोलता
साधना के मंदिर में वे बैठे रिक्तहस्त हैं।
त्रिकुटी को वेधा नहीं ,हृदय ग्रंथि छेदी नहीं
आँख अधमुंदी झूठे तप में वे मस्त हैं।
शून्य को न जानते , न देखा दसवां द्वार
चरण पुजवाते स्वयं ,पुरे भ्रष्ट चित हैं।
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2 . कोई कहे मंदिरों में जाओ बांटो दाल भात
कोई कहे ग्रन्थ समक्ष् माथे को टेक दो।
कोई कहे शुरू करो रोना उसे पाने हेतु
कोई कहे तीर्थों में बसो ,नहाओ डूब मरो।
कोई कहे ब्रह्म तो है दसवें द्वार बैठा
कोई कहे तिल भीतर ब्रह्म प्रसार लखो।
देखा नहीं किसी ने ,न ज्ञान हुआ आप
भ्रम के ललाट पर ब्रह्म का तिलक धरो।
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3 . कोई कहे जप करो तोते सा रटो नाम
सुमिरनी ले हाथ काम सब निकाम करो।
रूप नहीं जाना न अरूप गुण धाम प्यारे
वृत्ति को सुधारा नहीं पंचाग्नि वास करो।
मन में अनेक लास ,उमंग और कामनाएं
सब कहें त्यागो इन्हें शांति सुख धाम वरो।
सकाम, निष्काम ,अकाम सब प्यारे उसे
सहज हो सहजता से सहज को आराध वरो।
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4 . गुरु तो वही जिसने खुद जप तप किया
एकान्त में बैठ निष्काम हो के जाना है।
अंतर्गत आराधा उसे अन्तर्गत पाया उसे
बाहर के जगत में अनुभव को बखाना है।
पोथियों को त्यागा छोड़े कर्म काण्ड सब
प्रेम के प्रसार में उसे प्रेम से नवाजा है ।
ईर्ष्या द्वेष दम्भ और पाखण्ड सारे छोड़
मोह ,माया ,मेरा तेरा भ्रम को त्यागा है। ............. अरविन्द
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