शनिवार, 14 दिसंबर 2013

सबने सबको नोचा है

सबने सबको नोचा है ,
लोकतंत्र का लोचा है।
वह बूढ़ा भी तो बंदा है
राजनीति ने सोचा है।
बेंदी ,सुर्खी ,पाऊडर
सुंदरता का धोखा है।
आंदोलन में भीड़ भाड़
जनता ढूंढ़ती नेता है।
झूठों की दूकान सजी
परमात्म तो धोखा है।
जनता बलि पशु बनी है
शातिर हाथों में सत्ता है। …………अरविन्द




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