शनिवार, 7 दिसंबर 2013

कुर्सी

जोड़ तोड़ करके जो भी कुर्सी पर बैठने आया है
अहंकार की खूंटी पर दिमाग टांग कर लाया है।
पद मद, दुष्टता, धन, चापलूसी  और बेईमानी
मूर्खता से भरा टोकरा वही अपने साथ लाया है।
कुर्सी पर  बैठते  ही धृतराष्ट्र  हो  जाते  हैं कुछ
अपना ही घर भरना आजकल कुर्सी की माया है .
समता समानता ,परहित कल्याण को छोड़िये
कुर्सी पर तो किसी शातिर शैतान का साया है।
मासूम सा चेहरा झुकी आँखें ,मीठी भाषा लेकर 
खूंखार जानवरों ने आज कुर्सी को हथियाया है।
चापलूसों की भारी भीड़ ने घेर लिया है कुर्सी को
आम आदमी को इन कुर्सी वालों ने तड़पाया है।
धर्म ,राजनीति ,व्यवस्था और विद्यालयों में
कुर्सी पर बैठे अमानुष ने खूब आतंक मचाया है ।
भले मानस ,बड़े पंडित ,आम विद्वान ये सारे
कुर्सी के स्तुतिगान में सबने दिमाग खपाया है ।
षड्यंत्र , मक्कारी, कमीनगी  और  अन्याय
कुर्सी के चारों पैरों पर इन्हीं का घना साया है। …………अरविन्द


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