सुनो !
अंजुरी में अब भर तो लो
आंखड़ियों में धर तो लो।
कब तक खड़ा रहूँ द्वारे पर
अब अपना तो कर तो लो।
मुझे सदा बेगाना माना है
अपनों को अपना जाना है
दो फूल चढ़ा दें देहली पर
कुछ लोटा जल दे जाएँ जो
कुछ मीठी मीठी बातों से
तेरे गीतों को गा जाएँ जो
क्या वही अपने होते हैं ?
जो आँखे भर तकते रहते हैं।
मैं गीत न कोई गा सकता
झोली भर फूल न ला सकता
जगती का सब कुछ जूठा है
उच्छिस्ट नहीं मैं दे सकता।
मैं राह की चाहे धूल सही
बिखरा हुआ कोई फूल सही
देखा चाहूं तेरी दरियादिली
शबनम के इस कतरे को
चूम के दरिया कर तो लो
अंजुरी में अब भर तो लो।
बड़े शौक से प्रभु बन बैठे हो
बड़े शौक से सजदा सुनते हो
खुद खुदा बने बैठे हो प्यारे
मुस्का के अपना कर तो लो
अंजुरी में अब भर तो लो। ............. अरविन्द
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