गाता है कृष्ण ,गाती है प्रकृति
नाचता है कृष्ण नाचती है प्रकृति
बांसुरी की धुन पर गोपियाँ भी नाचीं
नाची सारी कुदरत , पत्तियाँ भी नाची
बाल बाल नाचे ,गोपाल सब नाचे
सत्य मुखरित कर गया कण -कण
नाचा जब कृष्ण ,गाता जब कृष्ण।
जीवन के संघर्ष का मन्त्र है कृष्ण
स्वभाव में जीने का संकल्प है कृष्ण
अंधों की दुनिया में अंधे मत बनो
अंधों को पछाड़ कर प्रकाश को गुनो
आततायी कभी सगा नहीं होता
युद्ध रत होकर न्याय को चुनो।
प्यार में भी आदमी ,आदमी बनो
प्रिया संग कोमल बांसुरी सुनो
कदम्ब की छाहँ तले राधा जीओ
अमृत है प्रेम ,अमृत को पीयो।
जीवन भी तो युद्ध है ,प्रेम से जीओ।
मृत्यु तो है असत्य फिर भागना क्यों ?
मानवी देह में फिर क्लीवता क्यों ?
पुरुष हो पौरुष की पुकार को सुनो
गाता है कृष्ण ,कृष्ण गान को सुनो। ............. अरविन्द
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