कहीं हीरा हुए हम ,कहीं पत्थर हुए हम
इच्छा है जैसी आपकी ,वैसे ही हुए हम।
सागर सी छलकती आँखें देखीं तो लगा
लहर हो गये हम ,खुले आकाश हुए हम।
आँखें तरेर कर देखा उन्होंने जब हमें
शबनम नहीं रहे हम ,शोला ही हुए हम।
जीभ जो न बोली ,आँखों ने कह दिया
अर्थ सारे समझ गए ,सार्थक हुए हम।
किसे ढूंढते हो जंगलों में इन पहाड़ों पर
भीतर हुए जो खाली ,खुदा हो गए हम।
नहीं रही जरुरत अब किसी आशियाने की
अपना ही हमको मिल गया अपना हुए हम।
सोई रात में कल जगा दिया उस प्रभु ने
नींद सारी उड़ गयी ,लो राम हो गये हम। ………………अरविन्द
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