गुरुवार, 24 अक्तूबर 2013

सर्दी उतर आयी है।

मौसम बदल गया है भाई,
सर्दी उतर आयी है।
आते ही सर्दी ने ,मुझे
गहरी जफ्फी पायी है।
पिंजर सारा हिल गया
दुहाई है ,दुहाई है।
सर्दी उतर आयी है।
शीत के सुस्पर्श ने 
सिर भारी मेरा कर दिया
कनपटियों में
दर्दीली लहर उमड़ आयी है।
नासिका बंद बंध
आँखों की बैरोनियों में
लाली उतर आयी है।
सर्दी उतर आयी है।
गला भारी भारी ,
कंठ थरथराता है।
बोलता हूँ जीभ से
नाक आगे आ जाता है।
जैसे शीत सारी
मेरी छाती में समायी है।
सां सां की ठंडी लहर
साँसों में उतर आयी है।
सर्दी उतर आयी है।
रामदेव फेल हुआ
झंडु ,डाबर मुहँ छिपाते

वैद्य नाथ कहीं नजर नहीं आया है।
दोशांदे सारे पीये ,
तुलसी मजूम बहुत खाया मैने
हमदर्द दर्द दे गया
अब चारपाई भायी है।
पत्नी ने मुहं फेरा ,
बच्चे दूर हो गये।
हालचाल पूछ मित्र भी
डरे ,परे हुए।
नजला ,जुकाम, खांसी
देह चरमरायी है।
विरहिणी का ताप जैसे
देह में समा गया --
जेठ के महीने का --
ताप तन तायी है।
कुदरत का ऐसा प्यार
हर साल आता है।
भुज पाश में आबद्ध कर
पूरा छा जाता है।
सर्दी का संयोग प्रेम
सप्ताह भर रहता है।
कोई भी बेगाना तब
पास नहीं आता है।
साप्ताहिक संयोग आनन्द
हम खुल कर मनाते हैं।
ताप चढ़ी देह में सर्दी को
सजाते हैं।
सर्दी को मानते हैं।
अभिसारिका सी सर्दी
दबे पाँव चली आती है .
मिलानातुरता उसे
खींच मेरे पास ,हर साल
लाती है।
खुले मन भोगती
परमानन्द मनाती वह
अन्तर -सुख भोग कर
प्रसन्न मन लौट जाती है।
मैं भी  उदास मन ,
बिस्तर को त्यागता हूँ .
अगले साल आएगी
प्रतीक्षा मन छाई है।
…………………………अरविन्द


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