अरविन्द दोहे
मन्त्र जपे प्रभु मिले नहीं न तीरथ माहीं वास
निर्मल कर रे निज मानसा ताहि छवि निहार।
भटकत भटकत भटक गया ,मिटी न भव की चाह
गुरु न मिला विलक्खना या हौंस रही मन माहिं
माही मेरा बहुत विचक्षना जाने सब कुछ मोर
मैं मूरख अति विलक्षना कहूँ होर अति होर।
प्रभु की इच्छा करो मन ,प्रभु से इच्छा नाहिं
भव बंधन छूटेगा मना भव खंडन कर गाहिं।
साईं तो मौनी भया, नाहीं सुनत पुकार
किस भाषा टेरू तुझे ,प्रभु मेरी ओर निहार।
फाटा मेरा चोलना टूटा मम का ताग
आके अब उबार लो ,लागी उलटी धार।
कर कर कर कर ही गया ,करतब किया न कोय
करतब जो भी किया प्रभु , करतम करतम होय। ………. अरविन्द
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