सोमवार, 21 अक्तूबर 2013

तुम दोनों

तुम दोनों -----
जैसे पुखराज की आसक्ति
जैसे किरण की अभिव्यक्ति
जैसे नीलिमा की मस्ती
जैसे शिखरों पर की भक्ति
जैसे शक्ति में अनुरक्ति
जैसे कंदर्प और रति।
तुम दोनों ---
जैसे सौम्यता के भाव
जैसे चित चढ़ा चाव
जैसे स्पृहणीय हो लाड़
जैसे प्रेम का विभाव
जैसे कोमल हो अनुराग
जैसे शान्ति सद्भाव
जैसे पानी और प्यास
जैसे रक्तिमता गुलाब
तुम दोनों ---
जैसे शिशु की मुस्कान
जैसे नाचता भगवान्
जैसे उल्लास का वरदान
जैसे खुला आसमान
जैसे मॆत्रि परवान
जैसे चूड़ी की खनकार
जैसे पायल की झंकार
जैसे राधा का हो मान
जैसे कृष्ण की हो तान
जैसे वंशी की पुकार
जैसे माधवी सुकुमार
जैसे षोडशी की लाज
जैसे उल्लसित सुहाग
जैसे अपना मन मीत
जैसे विभावरी का गीत
जैसे कविता का मान
जैसे मेरी मुस्कान
जैसे ईशान का आलाप
जैसे प्रणव का हो जाप
जैसे आदित्य की पुकार
जैसे अनन्या की किलकार
लिख दूँ कुछ और
जैसे सागर की हो भोर
अब दे दूँ वरदान
सुखी रहो फलो -फूलो
हो सर्वविध कल्याण
करो सर्वविध कल्याण। …………… अरविन्द

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