शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

वाह ! मेरे प्रभो

वाह ! मेरे प्रभो ,तेरी लीला तुम ही गहो .
सुंदर वेश बना कर प्रभु जी ,किस -किस को कहाँ बिठाते हो.
ज्ञान का अद्भुत आवरण लगाकर छिपा अज्ञान समझाते हो।
लीलाधारी लीला तेरी अद्भुत न्यारी दुनिया गजब दिखाते हो।
साधु नाचे ता- ता थैया ,आँख बंद कर बैठी मैया मनवाते हो।
भक्त बेचारे हाथ जोड़ कर द्वार खड़े , देख देख मुस्काते हो ।
ऊँची गद्दी ,आसन सुंदर मखमली तकिये हमें बहु ललचाते हो।
मीठी मीठी प्यारी प्यारी बातों से प्रभु मछली बड़ी फँसाते हो ।
अब कृपा करो मेरे माधो ,अपने हो क्यों इतने नाच नाचते हो ।.……… अरविन्द

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें