शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

धर्म और धर्माचार में

धर्म और धर्माचार में आजकल सैद्धांतिक शब्दों के साथ ,सिद्धांतों के साथ अनाचार हो रहा है। वे लोग जिन्हें न तो सनातन धर्म का ज्ञान है ,न उनके पास कोई अनुभूत सत्य या प्रयोग हैं ,उन्होंने अपने अज्ञान को छिपाने के लिए भारतीय धर्म साधना के मूल तत्व पर आक्रमण किया हुआ हे। हालाँकि इस क्रिया से मौन साधकों को कोई नुकसान नहीं होता परन्तु अधकचरे लोग असत्य को ही सत्य मानने लग जाते हैं। ऐसे शब्द जिनकी आत्मा और अर्थ के साथ अनाचार किया गया है ,संख्या में बहुत हैं ---जैसे ,सत्संग ,ध्यान ,परमात्मा , गुरु ,गुरु माँ ,मंदिर ,पाठ इत्यादि। आप खुद ही सोचिये कि वे प्रवाचक जो अपने प्रवचनों में हिंदुओं के या सनातन धर्म के कर्म काण्ड का खुला विरोध करते हैं वही इसी कर्म काण्ड में आपाद -मस्तक लिप्त हैं। क्या यह प्रपंच और पाखण्ड नहीं ?तप ,जप ,भजन ,कीर्तन, अनुभव साधना ,कर्म ,कर्म काण्ड ,मन्त्र ,दीक्षा ---और भी अनेक शब्द हैं जिनके  मूल अर्थ ही बदल दिए गये हैं। इसीलिए आज साधना का प्रभाव और परिणाम कहीं दिखायी नहीं देता। केवल दुकानदारी दिखायी  देती है। आज के युग में  सत्य के संरक्षण के लिए ,सत्य के सार्थक अनुसन्धान के लिए और सत्य की निष्ठां के लिए वास्तव में एक और  कबीर की आवश्यकता है। नित -प्रति की खबरों में साधुओं के नैतिक पतन की संख्या प्रतिक्षण बढ़ रही है। जो खुद ही पथ भ्रष्ट हो चुके हो वे किसी दूसरे को क्या मार्ग दिखाएंगे ?तथाकथित गुरुओं के अंधत्व की बड़ी लम्बी पंक्ति है। कबीर ने अपने युग में भी  कहा था  ---जाका गुरु भी अंधला चेला खरा निरंध। यह कल भी सत्य था और आज भी सत्य है। उपनिषद् भी कहता है कि सत्य का मुहं हिरण्य से आवृत है। और यह आज का कटु सत्य है कि असत्य कभी सत्य को प्रकट नहीं कर सकता। आज कल के तथाकथित प्रवाचकों में छिपी प्रति स्पर्धा ,ईर्ष्या ,द्वेष ,झूठ और मेकअप किसी से भी नहीं छिपा है। बेशर्मी की हद्द है। सही साधक और ईमानदार संत ,जिनकी कथनी और करनी एक हो ---ऐसे गुरुजन सचमुच दुर्लभ हैं। कबीर भी कह चुका  है। बाबा फ़क़ीर भी कहते रहे हैं कि जिन्होंने अपना घर नहीं संभाला वे लोगों को शिक्षा दे रहे हैं। फ़क़ीर कितना निर्भीक संत होगा ---यह जानने के लिए उनके साहित्य को पढ़ना जरूरी है। बाबा फ़क़ीर जैसी स्पष्टता ,निर्मलता ,समदर्शिता ,समता ,निस्वार्थ प्रेम आज कल के प्रवाचकों में नहीं मिलता। इसीलिए परमसत्य की परछाई भी कहीं दिखायी नहीं देती। परमसंत कहलवाना आसान है ,परमसत्य का साक्षात्कार आसान नहीं है। वैसे इन लोगो को परमसत्य की आवश्यकता भी नहीं है। .......... अरविन्द

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