आभार प्रभु आपकी
अनंत कृपा का आभार।
लिया तुमसे बहुत कुछ
ज्ञान,अर्थ,अर्थार्थ प्रेम साकार।
बहुत आभार।
तुमने क्यों नहीं माँगा था
हिसाब?
आज कहा है ,तो कहो
क्या क्या धरुं
चरण पर अनुभार।
दांत से पकड़ा कि
चाहे हाथ से,
अब लोटाना है मुझे
अवनत विनम्र माथ से।
पुन: निवेदन है प्रभो
लौटा नहीं सकता
प्रेमपूर्ण ज्ञान हे अहो।
अर्थ हुआ दुर्वह
लौटाता हूँ विभो।
अन्यथा न लें मेरी प्रार्थना
निर्भार करना चाहता हूँ
तव आत्मा।........अरविन्द
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें