गुरुवार, 4 सितंबर 2014

देख ली दुनिया

देख ली दुनिया बहुत ही घूम कर जटिल
झगड़ना तुझी से जी भर है बिगड़ना मुझे।

नचा नचा कर नाच बेहद थका दिया तुमने
कितने पर्दों में छिपा तू देखना अब है मुझे।

खत्म हुए तारे सभी ,चन्द्रमा भी बुझ गया
अब तो आ जा सामने या तड़पना है मुझे ।

ठंडी हवाओं में तू तो सुख से है सो रहा
इस झुलसती गर्मी में अभी जगना है मुझे।

कब तुम्हारे अंक हिमानी में आ मैं सिर धरूँ
कुछ तो कृपा करो प्रभु मेरे कि सोना है मुझे।

तुमने ही तो कहा था कि हाथ थामो जरा
जिंदगी के गीत को सुनना सुनाना है मुझे।

जीना मुश्किल कर दिया है निगोड़ी प्यास ने
प्यास जलती हुई देकर तुमने तड़पाना मुझे।

कब तलक मैं द्वार पर दीपक जला बैठा रहूँ
कितनी आरती स्तुतियाँ ,मनुहार करनी है मुझे। ………अरविन्द

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