शनिवार, 5 जनवरी 2013

असफल प्रजातंत्र की विकृति में जी रहे हैं .दामिनी काण्ड के चशमदीद को सुनने के बाद लगता है की राजनीति संवेदनाहीन है .मीडिया को भी समझना चाहिए की सार्थक बहस के लिए श्रेष्ट विचारक तलाशे .  पार्टी प्रचारक सही सोच नहीं दे सकते .पाखंडियों से आप समाधान क्यों चाहते हो ?चश्मदीद का वक्तव्य देश ,राजनीतिज्ञ ,राजनीति और सरकार के लिए कलंक है .
  आज इंडिया टीवी पर एक रिपोर्ट देखी --जहाँ देश के भिन्न भिन्न शहरों में लोग स्त्रिओं की साथ अभद्र व्यवहार करते दिखाये गए .सारा मुल्क विकृत कामुकता की बीमारी से ग्रस्त हो गया लगता है . भारत में अब आदमी कम काम के पुतले ज्यादा जन्म ले रहे हैं . शिक्षा व्यवस्था असफल ,सामाजिकता नष्ट भ्रष्ट ,आत्मीयता दफ़न ,...बस! भोग  ही भोग .पूरे भारत की मानसिकता को स्वास्थ्य की आवश्यकता है .जनता जिन समस्याओं के साथ जूझ रही है ,उन समस्याओं का समाधान की तलाश गलत लोगों में और गलत तरीके के साथ हो रही है .जिन्हें हम ज्यादातर मीडिया में सुनते हैं वे अपरिपक्व मानसिकता के या राजनीतिज्ञों के दास हैं .जब देश धर्मनिरपेक्ष हो सकता है तो सरकारें पार्टी निरपेक्ष क्यों नहीं हो पातीं ?

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