केदार त्रासदी ...
रहिमन विपदा हू भली जो थोड़े दिन होए .
हित अनहित या जगत में जान पड़े सब कोय .
केदार
की त्रासदी ने इस देश के गिरते हुए चरित्र के वीभत्स रूप को दिखा दिया है
.देश के गृह मंत्री को यह राष्ट्रिय आपदा नहीं लगती ...यह राजनीति की
कुरूपता है ...और इनसे ऐसी आशा थी .सरकार की ओर से इन यात्रियों के लिए कोई
संवेदना नहीं है ...इसे समझ लेना उन लोगों के लिए जरूरी है जो इन्हें
चुनते हैं .
दूसरे ,असहाय
यात्रियों को केदार ,बदरीनाथ इत्यादि प्रदेशों के निवासियों से कोई सहायता
नहीं मिली ..यह ज्यादा चिंतनीय और अशोभनीय है .लोग लकडियाँ जलाने के लिए माचिस मांगते हैं उन्हें कोई माचिस नहीं देता .क्या देव स्थानों पर राक्षस रहने लग गए हैं .?.
तीसरे
,और भी अधिक शर्मनाक ...मंदिर में चढ़े हुए धन की लूट ,...पतन की पराकाष्टा
है ...किसने इस देश के लोगों को लोभी ,लालची और शवों के व्यापारी बना दिया
..विचारणीय होना चाहिए . मनमोहन ने ,तो धिक्कार है उसे ,वैसे वह आदमी नहीं कठपुतली है ..लानत है .
चौथे
,सरकार झूठी है ..इसमें कोई संदेह नहीं रहा .जो देश को मृत लोगों की सही
संख्या नहीं बताना चाहते धिक्कार के पात्र होने चाहियें .
मोदी को वहां जाने से रोकना कांग्रेस के दिवालियापन को दिखाता है .
हमारा
दुर्भाग्य है जो हम इस पतनोन्मुख भारत को देख रहे हैं ...राजनीतिज्ञों ने
तय कर लिया है कि वे पार्टी हित को प्रमुख रखेंगे ,देश हित चाहे भाड़ में
जाए .
सभी इंसानियत पसंद लोगों को राष्ट्रिय शर्म दिवस की घोषणा कर देनी चाहिए ...अरविन्द
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