शनिवार, 1 जून 2013

झूठ कहते हैं कि आदमी में ईश्वर का वास है ,
असभ्य जंगली जानवर आदमी का आवास है,
क्रूरता ,पशुता ,आक्रमण ,भय और आतंक में
कंठी ,तिलक ,छाप ,माला छद्म परिहास है

यह तरक्की दीखती जो जगत के आकाश में
विज्ञान के प्रकाश में ,ज्ञान के आभास में --
अहंकार के परचम लहरा रहा है आदमी .
दंभ और पाखण्ड मिले हैं इसे अभिशाप में

अभिशप्त से करुणा ,कृपा ,प्रेम की इच्छा ?
सहानुभूति ,दया ,ममता ,परमार्थ की इच्छा ?
आकाश कुसुम मिला क्या कभी आकाश में ,
नहीं रह सकता ईश्वर इस आदमी के पास में!

ईश्वर बेबस ,असहाय ,मौन कर बद्ध नहीं,
आदमी के कर्म कांड जंजाल पाश बद्ध नहीं,
मन्त्रों से पूजता नर केवल उसे अहंकार वश,
स्वार्थ वश ,आर्त्त  या केवल संस्कार वश

पाखण्ड पूजा अर्चना ,पाखण्ड इसके पाठ हैं
पाखण्ड उठना बैठना ,पाखण्ड वाणी वाक् हैं .
पाखण्ड इसका भजन,  पाखण्ड कर्म काण्ड है .
पाखण्ड इसकी प्रार्थना ,पाखण्ड इसका ध्यान है .

दो लोटा जल ,खंडित पुष्प कर में लिए
बेसुरी घंटी ,घंटा नाद, शंख ध्वनि भर दिए .
जाने बिना उसे, अगणित गीत इसने रच दिए .
दंभ पूर्ण भक्ति के सब पाठ इसने पढ़ लिए .

चढ़ पहाड़ों के शिखर पर नाचता .
बाहें ऊपर उठा ऊंचे उसे पुकारता
या मौन हो किसी नदी या घाट किनारे
भीतर कहीं डूब उतरे जा कहीं गहरे

विक्षिप्त नर ऐसे में कैसे रह सके परमात्मा
सब में नहीं देख पाया जो उसकी ही आत्मा ? .
दूसरों को दर्द ,दुःख ,संताप पीड़ा दे
नहीं रह सकता है प्रभु इसमें आकर के .

हवा बहती , किरण बहती , जल नहीं रुकता .
सौन्दर्य है शिव सत्य मल सह नहीं सकता .
जो भी दिया उसने सभी कल्याण कारी है .
पुरुष ही केवल अधम अति अत्याचारी है .

परमात्मा को योग ,जप ,तप ,यज्ञ न चाहिए
आदमी में उसे केवल आदमी चाहिए .
आदमी होकर भी जो न आदमी बन पाया
कैसे कहूँ ईश्वर ने इसे अपना घर है बनाया ?

पेड़ में ,हर पत्ते में है ईश्वर का वास .
गाय ,बैल ,साँप बिच्छु ,सिंह उसके पास .
आदमी का है वहाँ चिरकाल से अकाल
रह नहीं सकता उसके पास ये कलंकित कंकाल .

प्रेम सागर सा उदारता आकाश सी चाहिए
गर आदमी को उसके घर आवास ही चाहिये .
सबके सुख की कामना नर कर नहीं सकता .
निर्बंध वह ,बंधन ग्रस्त उसे वर नहीं सकता .........अरविन्द



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें