रविवार, 2 जून 2013

कुण्डलिया छन्द

कुण्डलिया छन्द
कविताओं के राज में नहीं पड़ा अकाल
कविता  के पीछे भगे कवि हुए बेहाल .
कवि हुए बेहाल गिरे जो एक भी पत्ता
लिख दसियों भाव ज्यों लत्ते पे लत्ता।
कहे अरविन्द कवि सजे जैसे कोई वनिता
ऐसे ही सज रही आज कविता पर कविता ....अरविन्द
 

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