मंगलवार, 4 जून 2013

अरविन्द कुण्डलियाँ

कालेज की अब मैं कहूँ बड़ी अनोखी बात
इक दूजे के प्रति सब रचते घात प्रतिघात .
रचते घात प्रतिघात प्रकांड पंडित हैं रहते
ज्ञान झौंक दिया आग कभी उठते हैं गिरते
ख रहे अरविन्द कवि मिले नित नई नोलेज
काँव काँव सब कर रहे,अपना ऐसा है कोलेज .
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प्रिंसिपल ऐसे मिले हमें,  न सिद्धांत न ज्ञान
लड़वा रहे एक दूजे को  अपनी  बघारें शान .
अपनी बघारें शान ,विप्र संग कर ली मिताई
धन गटक रहे मासूमों के  नित छकें मलाई .
कहे अरविन्द कवि चतुर्थ श्रेणी रोये प्रतिपल
फाइलों के ढेर पर  बैठा ठाला अपना प्रिंसिपल .
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विद्वान हमें नहीं चाहिए ,चाहिए चापलूस
डिग्री  उसकी  बड़ी हो ,पर तलवे चाटे  खूब .
तलवे चाटे खूब ,वाही  प्रिंसिपल  बन  जावे
प्राइवेट विद्यालय में ,झूला जो खूब झुलावे.
कहे अरविन्द कवि राय सजाये ज्ञान दूकान
नव रत्नों में बैठ सज रहे चापलूस  विद्वान .
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डोनेशन ,ग्रांट पर चलाओ शिक्षा की दुकान
यू .जी .सी .से धन मिले हो जाओ धनवान .
हो जाओ धनवान ,भाड़ में जाएँ सब बच्चे
हमें चाहिए फ़ीस बस ,बन जाएँ चाहे लुच्चे
कहे अरविन्द कविराय पायेगा वही प्रमोशन
हेरा फेरी जो  करे , भरे  नित डिब्बा डोनेशन
.......................................................................अरविन्द 

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