गजल
खामखाह लोगों को तराशा न कीजिये
गजलों को दोषों से नवाज़ा न कीजिये .
दर्पण तो दर्पण है प्रतिबिम्ब दिखायेगा
अपने आप को भी जाँच लिया कीजिये .
राजनीति ने चौसर तो बिछा रखी है यहाँ
अनाड़ी खिलाड़ी को बिठाया मत कीजिये .
बादल घेर लेते हैं आकाश सावन महीने में
बेमौसम की बरसात में भीगा न कीजिये .
हुस्न कोई नियामत नहीं खुदा अपने की
आँखों को अंजन से भी आँज लिया कीजिये .
बहुत मासूम है अपने इन दुश्मनों का चेहरा
हर मूर्ति के सामने माथा टिकाया न कीजिये .
लोग बेबजह हँसते नहीं रहते हर किसी पर
अपने जख्म हर किसी को दिखाया न कीजिये .
मेमनों की तरह हम क्यों मिमियाते रहें हरदम
राम बालों के बगल की छुरी पहचाना कीजिये ......अरविन्द
रात इतनी संगीन क्यों हुआ करती है... इतनी अंधियारी कि किसी उजली सुबह की कल्पना भी अजीब लगे। हर बार रात के साए डरावने से क्यों होते हैं? क्यों तपते जलते रेगिस्तान में छाया का एक बबूल भी नहीं होता? क्यों हर बार अंगारों से दहकते पत्थर पाँव का सुकून बनने लगते हैं ? क्यों दर्द की सरहदें मन की गहराईयों का समंदर लांघ कर मुझ तक आ नहीं पातीं ? क्यों तुम्हारा मौन हर बार मेरे प्रश्नों को लील जाता है एक मासूम सा जवाब बन कर? क्यों खिला देते हैं आंसू भी नन्ही नन्ही मुस्कान की कलियाँ ??? कभी जान पाऊँ गी मैं ? तुम बताओगे मुझे....
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