इबादत ही मुहब्बत है ,मुहब्बत ही इबादत है .
आदमी की ही नहीं यह ,खुदा की रियासत है .
मुहब्बत का नहीं मजहब न है कोई किताब
हिसाब मुहब्बत का, आदमी की सियासत है .
इजाजित लें मुहब्बत करे कोई हो नहीं सकता
मुहब्बत पहरेदारों के प्रति खुदा की बगाबत है .
कोई मुल्ला ,कोई पंडित न ठेकेदार मुहब्बत का
जड़ हो चुके धर्म विरुद्ध प्रेमियों की बगाबत है .
मुहब्बत खुदा की आग हर कोई ले नहीं सकता
दिल के मंदिर में यह खुदा की ही हिफाजत है .
न जिस्म ,न जां कभी मिलते है मुहब्बत में
रूह की पुकार मुहब्बत ,खुदा का स्वागत है .
डर डर कर कभी कोई मुहब्बत कर नहीं पाया
मुहब्बत बंदगी है वहाँ खुदा माशूक सलामत है ..........अरविन्द
......................कवी श्री सूद के लिए ....................
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