गुरुवार, 4 जुलाई 2013

.हमारी जातिगत नपुंसकता ..

आज खबर सुन रहा था कि केदार नाथ में मृत शरीरों को कौए और कुते नोच रहे हैं ..सरकार कुछ नहीं कर रही .....मैं  हिन्दुओं और सनातन धर्मियों की मानसिकता पर सोचने लगा कि कैसी है यह कौम जो न तो  देवता की रक्षा कर रही है ,न ही तीर्थों की और न ही अपनी जाति की .बल्कि नपुंसकों के समान सरकारों की और देख रही है .हमारे सभी धर्म गुरु   ,सभी शंकराचार्य जो पूजा होनी चाहिए या नहीं ..इस विषय पर विवाद कर रहे हैं ..सभी बापू चुप हैं ...किसी ने भी जनता की सुध लेने की कोशिश नहीं की .हिन्दू गृहस्थ इन लोगों का पालन पोषण करता है ,इनमें से कोई भी न तो मंदिर के पुनर निर्माण के लिए आगे आया है न ही किसी ने शवों के दाह संस्कार की व्यवस्था में कोई योगदान दिया है ,न कोई आन्दोलन  हिन्दू  पीड़ितों के लिए हुआ और  न मंदिर के लिए ....उपदेशकों की इस लम्बी चोडी जमात को क्या हमने चाटना है ...लोग खुद जूझ रहे हैं और सरकार बेशर्म ताक  रही है ..क्यों न हम इन तथाकथित धर्माधिकारियों का तिरस्कार करें ..यह संकट, जाति की परीक्षा है ,जिसमें हम और हमारे  समस्त पीठाधीश्वर बुरी तरह   से असफल सिद्ध हुए हैं ...यह एक पराजित और त्रस्त कौम की त्रासदी है ....हमें राजनीतिज्ञों को छोड़ कर अपने आप और अपने धर्म गुरुओं की क्लीवता के बारे में सोचना होगा .संसार में शायद ही कोई कौम ऐसी हो जिसने  स्वयं को लुप्त कर देने और तिल तिल कर नष्ट होने के साथ समझोता कर लिया हो ...जिस जाति के साधू ही माया के प्रपंच से मुक्त नहीं हो पाए वे किसी का क्या उद्धार करेंगे ?... ..अब इन लोगों को प्रणाम तक करने को मन नहीं चाहता ..ये सभी संकट के समय हमें मंझधार में छोड़ देने वाले हैं ...अमानुष ................अरविन्द 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें