मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

जय राम जी की !

जय राम जी की !

जय राम जी की !
कवि जी ! जय राम जी की।
कामनाओं की देख रहा हूँ
बसी हुई बसती।
जय राम जी की !

नया नया है नित जीवन यह
नित नवीन अनुभव -अभिलाषी
नित नए को चाहे जग
नया कंथा नयी कंथी ।
नया रस रास ,नया भाव
नयी मौलिकता अन्वेषी।
नया पंथ हो ,नए शब्द हों
तू अब तक बना हुआ पुरातन पंथी।
जय राम जी की !

पुराण काल का प्रेम तुम्हारा
बासी प्रेम कहानी।
बासी उपमा , अलंकार सभी , सब
बासी शैली बिंब बेचारी।
नायिका तो है श्याममुखी
तू कहता उसे चंद्रमुखी।
जय राम जी की !

कवि तो क्रांतदर्शी होता है
न होता कुँए का डड्डू।
कब तक टर्र टर्र सुनेगें सारे
तू अटका देहबिंदु पर बुद्धू।
गहरे उतरो ,मन में गहरे
बह रही नदी विविधा जीवन की ।
जय राम जी की !

सत्य कटु मधु चहुँ दिशि व्यापे
देख चमकते जग जीवन में
भांति -भांति के रवि शशि।
जय राम जी की ! …………… अरविन्द

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