जिंदगी कभी पानी कभी अमृत कभी जहर है
कभी मरुथल कभी उपवन कभी यह कहर है।
कभी मरुथल कभी उपवन कभी यह कहर है।
कभी गाना कभी रोना कभी है फूल सा हँसना
कभी लुटना कभी बँटना कभी धूल में धंसना
कभी मंजिल शिखरों की कभी खाई में गिरना
कभी हिंसा कभी करुणा कभी प्यार की रचना
बहुत रंग बिरंगी है कभी यह उजड़ी उदासी सी
कभी फुलझड़ीहो नाचे उल्लसित किलकारी सी
कभी यह त्यागती सर्वस, कभी वैरागी हो जावे
कभी अप्सरा की आहट निःशंक भोगी हो जावे
कभी मचलन कभी लटकन सी मसकन सहर है
कभी सागर कभी लहर कभी नदिया की सैर है। ............. अरविन्द
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