गर्दन झुकाये ,उदास सा मन
आज चिंतन रत है।
सोचता है कि
लोग बेवजह उसे दोष देते हैं।
गधे से गिरते हैं और
कुम्हार को पीटते हैं।
आदमी दुखी या सुखी हो
मन कहीं कारण नहीं।
जो है ही सत्ताहीन
दोष या प्रशंसा का कहीं
अधिकारी नहीं।
राम राम रटने जाए जी
और कहीं बैठ
औटन लग जाए
आदमी कपास ,
मन का कहाँ दोष ?
मन की कहाँ प्यास ?
निर्णय लेता गलत कोई अन्य
पिटाई हो जाती बेवजह
मन की ख़ास।
आज मन है बड़ा उदास !
दुविधा में जीता
आदमी।
संकल्पहीन ,दृढ़ चित्त हीन
पंचेन्द्रिय आदत गुलाम।
न बुद्धि की सुनता
न मन की है गुनता।
केवल अपना स्वार्थ है तकता।
उसे चाहता ,जिससे कुछ लखता।
देखता कहीं ओर और गड्डे में
मूर्ख खुद गिरता।
फिर क्यों दोष मन पर मढ़ता ?
कामना नहीं जगती मन में
सदा बसती यह इन्द्रिय -स्मृति के तन में।
दोष नहीं मन का।
निर्णय के क्षण में
सुनता नहीं मन की
न्याय ,समता की
मर्यादा या नीति की
करता वही यहां हो
लोभ ,मोह , ममता।
फिर भी भृकुटि मन पर है तनता।
पागलपन है बुद्धि का ,कुबुद्धि का ,
इन्द्रिय आसक्ति और अशक्त संकल्प का ।
छोटे छोटे गलत निर्णय
लेता कोई अन्य
दोष मन पर मढ़ता।
करता पाखंड ,स्वार्थ
अविचारित निज हित की
फिर जलता मुझ मन को
अग्नि में पश्चाताप की।
आज अन्तर्लीन मन उदास है। ………… अरविन्द
आज चिंतन रत है।
सोचता है कि
लोग बेवजह उसे दोष देते हैं।
गधे से गिरते हैं और
कुम्हार को पीटते हैं।
आदमी दुखी या सुखी हो
मन कहीं कारण नहीं।
जो है ही सत्ताहीन
दोष या प्रशंसा का कहीं
अधिकारी नहीं।
राम राम रटने जाए जी
और कहीं बैठ
औटन लग जाए
आदमी कपास ,
मन का कहाँ दोष ?
मन की कहाँ प्यास ?
निर्णय लेता गलत कोई अन्य
पिटाई हो जाती बेवजह
मन की ख़ास।
आज मन है बड़ा उदास !
दुविधा में जीता
आदमी।
संकल्पहीन ,दृढ़ चित्त हीन
पंचेन्द्रिय आदत गुलाम।
न बुद्धि की सुनता
न मन की है गुनता।
केवल अपना स्वार्थ है तकता।
उसे चाहता ,जिससे कुछ लखता।
देखता कहीं ओर और गड्डे में
मूर्ख खुद गिरता।
फिर क्यों दोष मन पर मढ़ता ?
कामना नहीं जगती मन में
सदा बसती यह इन्द्रिय -स्मृति के तन में।
दोष नहीं मन का।
निर्णय के क्षण में
सुनता नहीं मन की
न्याय ,समता की
मर्यादा या नीति की
करता वही यहां हो
लोभ ,मोह , ममता।
फिर भी भृकुटि मन पर है तनता।
पागलपन है बुद्धि का ,कुबुद्धि का ,
इन्द्रिय आसक्ति और अशक्त संकल्प का ।
छोटे छोटे गलत निर्णय
लेता कोई अन्य
दोष मन पर मढ़ता।
करता पाखंड ,स्वार्थ
अविचारित निज हित की
फिर जलता मुझ मन को
अग्नि में पश्चाताप की।
आज अन्तर्लीन मन उदास है। ………… अरविन्द
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें