मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

हे रवि

हे रवि मार्तण्ड भास्कर !
आलोक दो जीवन को मेरे प्रभाकर !
तमा तामस तम अज्ञान दूर हो
खिले हृत - कमल, विमल रक्तोत्पल।

भ्रम विभ्रम ही माया तृष्णा
मोह जनित मानव मृण्मना
मृगतृष्णा में क्षरित हो रही
भुक्ति मुक्ति दिग्वसना।

हे पतंग !
दो ज्योतित रसना।

विमल वाणी ,मन विमल चित्त हो
विमल भाव ,गुण विमल हृत हो
विमल शब्द में विमला विलसे
ज्ञान क्रिया में तव प्रभा हुलसे
निरभ्र कामना हो
सर्व कल्याण प्रमा।

हे मार्तण्ड ! हे आलोकित मित्र मना !………अरविन्द

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