शनिवार, 17 जनवरी 2015

कहो कैसे हो यार !

कहो कैसे हो यार !
दिनों बाद मिले हो ऐसे कि जैसे
निकला हो इन्द्रधनुष
वर्षों बाद।
कहो कैसे हो यार !!

कहाँ रहे इतने दिन
दिखे नहीं न सुबह , न रात
न भिन्सारे , न खिले दिन ।
ढूंढता रहा ऐसे कि जैसे
कोई अँधा ढूंढता हो अपनी लाठी को
अपना सहारा प्रति पल , प्रति क्षण।

मित्र , अपरिचय केवल देह का होता है
मन और आत्म को तो
विचार कर देता है
चिरकालिक एक और अभिन्न।
फिर भी दर्शन नहीं दिए
कहाँ रहे इतने दिन ?

बहुत कुछ बदल गया--

समाज का आचरण।
अपनों का निवेदन।
बहस के मुद्दे।
अध्यात्म के प्रभु।
राजनीति के धुरंधर।
बच्चों की किलकारियाँ।
पत्नी की फटकार , मनुहार।
मौसम का व्यवहार।
प्रियतमा की पुकार।
चाँदनी का आचार ।
वंदना के गीत।
प्यारे से मीत।
घृणा के बिंदु ।
बिना बात बिगड़े बंधु।
बहुत कुछ बदल गया।

सब कहने के लिए
मैं तड़पता गया।
कहाँ चले गए थे तुम
तुम जैसा कोई अन्य न मिला।
कहो कैसे हो यार !
बहुत दिनों बाद मिले हो --
अब टूटेगा बांध , दुर्निवार। ………… अरविन्द

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