न जिंदगी ने रुलाया न जिंदगी ने फंसाया
हमने खुद ही खुद को खुल कर भटकाया।
अवसर तो आये थे बहुत सुख के स्वर्गों के
क्या कहें कि हमें इन नरकों ने ललचाया।
खुला आकाश था हमारे लिए उड़ने के लिए
धरती के नश्वर सुखों के भ्रम ने भटकाया।
किसने कहा था कि उतरो इसकी दलदल में
सने हुए हैं अब पछतावा आया तो क्या आया।
तुम लिख देते हो गजलों में कहानी अपनी
जी ली जिंदगी दिल से, तो क्यों रोना आया ।
बाहें खोल कर मिलो अब अपने पराय से
बहुत भटके हैं अब टिकने का समय आया।
धन्यवाद । मेरे प्रिय आत्मीय कवियो
तुम्हारी संगत में हमें भी लिखना आया ।
कुछ तो कहो अब मेरे अजीज मेरे प्यारे
ख्याल अच्छा आया की न पसंद आया। ................ अरविन्द
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