शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

गए थे हरि भजन को...

गए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास
सुशील जी ने कहा मति निकालो भड़ास।


दुनिया जैसी है वैसी रहे सबका है स्वार्थ
हर व्यक्ति नाच रहा अपना अपना नाच।


खुद ही जानो तुम प्रिय खुद की ही प्यास
कुआं भी खुद खोद लो गुरु झूठे बकवास ।


अपना कर्म ही आएगा सदा ही अपने काम
क्यों समय व्यर्थ गँवा रहा मूढ़ों का है गाँव।


मंदिर सजा के बैठे हैं भीतर सज रहा राम
पुजारी का वेश धर वहां बैठ चुका शैतान ।


ज्ञान जिसे तुम चाहते यहां खुली न दूकान
आत्म चिंतन में रहो मिल जाएंगे भगवान ।


संसार बड़ा विचित्र है कठपुतली का है खेल
नाचन हार नचा रहा तुम देखो उसके खेल ।


छोड़ सभी कुछ अलग चल झूठे हैं संस्कार
भीड़ त्याग अकेले रहो अपना आप निहार।


बाहर जो है दीखता नित बदले अपना रूप
अस्थिर जग असत है तू सत रूप स्वीकार । .......... अरविन्द

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